अँग्रेजी फ्रॉक पर पेंसिल हिल सैंडल डाल,
अपने ओंठो पर लगायी हमने लिपस्टिक लाल,
काला चस्मा आँखों पर चढ़ा चल पड़े मदमस्त चाल,
कॉफी हाउस में आने को उसने किया था हमें कॉल,
जिसकी तरह हम भी बनना चाहते थे स्वीट डॉल;
कॉफी का ऑर्डर दिया बढ़ाने को अपनी शान,
कुछ ही पल में कॉफी मिली करने को उसका पान,
बालों पर अटके चस्में ने चलायी अपनी ऐसी बाण,
फिसला मग हाथ से, किया कॉफी में हमने स्नान,
पेंसिल हिल की अपनी छूटने थे तभी ही प्राण,
पल भर में ही धूल गया अपना सारा झूठा सम्मान,
पर किसी की प्यारी एक बात ने डाल दी नयी जान,
"करना ही क्यूँ भला किसी की तरह बनने का प्रयास
जब खुद पर हो खुद को अटूट प्यार व विश्वास।"
बस फिर क्या था फेंका मग, उताड़ा सर से चस्मा,
खुले पैर फिर से शुरू कर दिया खुले में चलना।
©अनुपम मिश्र
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