पीछे मुड़कर देखती हूँ तो लगता है
अभी ही तो नन्ही नासमझ कन्या थी,
न जाने कब उम्र से प्रौढ़ युवती बन गयी,
हर पल एक नया किरदार निभाती रही,
जमाने के मुताबिक स्वयं को ढालती रही,
पर डर अब हमें भी वही सताने लगा है,
जिसने हर शख्स को स्तब्ध कर रखा है,
हमें भी इस मंच के छूट जाने का डर है,
क्या पता कौन अपना आखिरी किरदार है!
©अनुपम मिश्र
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