प्यार का मतलब बताते फिरते हर किरदार
जब कि प्यार को कभी दिल में उतारा ही नहीं;
प्यार की रट लगा, प्यार के नाम पर रुलाते यार,
पर कभी प्यार की नींव को संवारा ही नहीं;
प्यार नहीं, हो जैसे कोई जान लेवा ज्वर बुखार,
ऐसे बिमार प्यार से दिल को कोई वास्ता ही नहीं,
प्यार में जिसे अपने स्वार्थ से बस सरोकार,
ऐसे नासमझ के दिल में प्यार कभी उतरा ही नहीं
प्यार में न कर ए अनुपम अपना सब न्योछावर,
ये प्यार टूटा है दिल में, तेरे बस का ही नहीं।
अनुपम मिश्र
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