क्यूँकि मुझे देश से प्रेम है
देश की आबादी से प्रेम है
उसकी बढ़ती गरीबी से प्रेम है,
मुझे तो इंपोर्टेड ही चाहिए।
दिखाए कैसे कि हम अमिर हैं
नहीं कोई गरीब फकीर हैं
हम तो अपनी हैसियत बनाऐंगे
इंपोर्टेड ला सबको दिखाऐंगे।
चावल, दाल, गेहूँ का दाम लगाने में
जाने हम कितना सर खुजाऐंगे
पर पिज्जा बरगर पे जमके लूटाऐंगे
क्यूँकि हम इंपोर्टेड ही खाऐंगे।
दूध, चीनी और चैन को तो वह तरसता है
जो भरी दूपहरी में खेतों में खलिहानों में
न जाने कैसी बेतुकी कसरत करता है
पर हमारा दिल तो इंपोर्टेड पर धड़कता है।
इससे भला हमें क्या फर्क पड़ता है
चाहे तस्करी हो या काला बजारी
हमारे घर तो सब आ जाता है
तभी तो इंपोर्टेड इतना भाता है।
(composed it 20 years ago )
©amritsagar
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