हे राम,
सुना है हमने
तू अंतर्यामी है
जगत का स्वामी है
पुरूषों में श्रेष्ठ प्राणी है
सर्वोच्च तू ज्ञानी है;
फिर क्यूँ भला तू
माँ सीता के कहने पर
स्वर्ण मृग के पीछे भागा?
क्या सोच कर तुमने
उस ढोंगी के लिये
माँ को जंगल में छोड़ा?
क्या सच ही उसने तुम्हे ठगा,
और माँ को चूरा ले गया
या तुमने सबको ठग लिया;
रावण से लड़ने की खातिर,
माँ को दाव पर लगा दिया!
मारना ही था जो रावण को
तो सीता के हरण से ही क्यूँ
क्या कोई अन्य उपाय न था?
जानकी माँ के वापस आने पर
करना ही था जो उनका परित्याग
तो भला ली अग्नि परीक्षा क्यूँ;
जला न सके जो उनकी निर्मल छवि
फिर जलाया उनके अंतर्मन को क्यूँ?
©amritsagar
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