चुलबुली खुशी मदमस्त हो हृदय से मेरे झाँक रही थी
बाहर निकलने का रास्ता अपना टुक टुक ताक रही थी,
कुछ बेचैनी सी थी, कुछ घबराहट सी जो उसे दबा रही थी,
खुशी के हर उम्मीद व मौके पर वो डर का परदा डाल रही थी,
पर वो नादान ओठो से ही सही, मुसकान बन बाहर आ रही थी
हर छोटी से छोटी बात पर झूम कर नृत्य किये जा रही थी।
© अनुपम मिश्र
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