Thursday 21 May 2020

अब और नहीं


कब तक यूँ शब्दों से भ्रास निकालेंगे
दरिंदों को कब तक हम और पालेंगे?
बस बहुत हुआ अब मोम से प्रतिकार
अब हम उठायेंगे अपना हथियार,
चून चून कर करेंगे उन पर घातक वार
जिन्होेंने छीना उनसे जीने का अधिकार
जो बस अभी हुये थे चलने को तैयार।

क्यूँ  हम ऐसे हैवानों को पनपने देंगे
जो बस मासूमों की आबरू से खेलेंगे?
धिक्कार है उस शैतान की जननी को
जिसने कोख में पाला खूनी नेवले को
अभिशाप बनकर बेखौफ रौंदता है जो
कितनी ही निरीह कलियो औ' फूलों को,
वक्त है अब भी मार दो उस खूनी संतान को।

कितने कुकर्मों पर हम बस बौखलायेंगे
दो चार गालियाँ देकर फिर चुप हो जायेंगे?अ
यूँ ही अगर इन वारदातों को भूल जायेंगे
निर्दयी दानव कितने निर्भयों को खा जायेंगे, 
अब और नहीं, इन कपूतों को हम दिखायेंगे
कि कैसे चील कौवे इन्हें नोंच नोंच खायेंगे
औ' हम कोई और मातम नहीं,जस्न मनायेंगे।

*एक कोशिश 
आस पास दिखे यदि कोई भी भेड़िया भेड़ बना
कर देना तुम आसपास सबको चौकन्ना।
बेटिया नहीं रही बस सजावट का गहना
तुम उनको सख्त औ' सशक्त जरूर बनाना,
जो धोखे से भी कोई दुष्ट चाहे उनको छूना
आये उन्हें उसका हाथ पैर तोड़ गिराना।
हो चाहे कोई, हर पूकार को तुम सुनना
न जाने उनमें से कोई हो अपनी ही बहना।
©amritsagar


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