खुद को खुद ही हथकड़ियों से जकड़े रखा
न जाने कब तक खुशी को खुद में बाँधे रखा
दिल को हरदम ही सुकून ढूँढने में व्यस्त रखा,
जो था भीतर उसे भीतर ही कैद कर घुटते रखा,
आज खुद ही खुद की हथकड़िया खोल डाली,
जैसे चारों ओर बस नज़र आती अब बस हरियाली।
©अनुपम मिश्र
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