Thursday 21 May 2020

बेतूके सवाल


कितने ही सवाल ऐसे हैं ज़ेहन में
जो रहने न देते कभी होश में
ढूँढते जवाब बाहर भीतर
हर किसी के अवलोकन में।

सवाल यूँ ही न उठे मन में
परिणाम यह परिस्थितियों का जीवन में
शून्य ही था दिलो दिमाग बालपन में
जिसने जो कहा वही आया समझ में।

फरिस्ता बन कर आया कोई यौवन में
मांग भरी सब को साक्षी मान जिसने
मेरे सच और सपने सब बसते थे उसी में
सारी दुनिया सिमट गई उस एक में।

हमने देखा प्रेम की प्रतिमूर्ति उनमें
जो टूट गया कुछ ही दिनों में
गृहस्वामिनी बनाकर रखा था जिन्होंने 
गृहत्यागी बनने को मजबूर किया उन्हींने।

जिसके साथ बुने थे भविष्य के सपने
निकल परे वो करके उम्मीदों के टुकड़े।
दस साल बाद ये आई उन्हें समझ में
कि महत्व नहीं कोई हमारा उनके जीवन में।

तब से लगे हैं दिलो दिमाग में
अनगिनत सवाल यूँ रेंगने
कि सच और सपने के बीच में
पड़े फासले की दीवार लगे ढहने।

मिल जाते हैं जो भी राही राह में
उनसे ही लगते हम न जाने क्या पूछने
कि वह सर पकड़ दूरी बना लगते भागने
फिर भी इस विक्षिप्त को न आता समझ में।
©amritsagar

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Whether to sit or stand straight, Whether to strol or run fast, Whether to end or start, Whether to go Left or Right; No way is wrong or Rig...