Wednesday 20 May 2020

चाह

इन आँखों का जो कर सको सफर
फिर होगी तुम्हे इस बात की खबर
कितनी मदमस्त है हमारे दो नैनों
में बसी सपनों की सुहावनी सरोवर;

इनमें भी वही आम चाहते बसती हैं
जो उलझी सी बिखरी रहती सिमटकर,
जो हिलकोरे मारती हर शख्स के भीतर,
कभी हकीक़त बनती, कभी रहती घुटकर।

चाहे निभाये हम कोई भी नया किरदार
दिल में तो बसता बस वही अपना आधार
जो जन जन के भीतर लेता आलौकिक आकार,
बस पाने को अपने जीवन के मौलिक अधिकार।

कई बार उम्मीद जगी इस दिल में तड़पकर,
काश कि कोई तो साथ चलता उस पार तैरकर।
©अनुपम मिश्र

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Whether to sit or stand straight, Whether to strol or run fast, Whether to end or start, Whether to go Left or Right; No way is wrong or Rig...