इन आँखों का जो कर सको सफर
फिर होगी तुम्हे इस बात की खबर
कितनी मदमस्त है हमारे दो नैनों
में बसी सपनों की सुहावनी सरोवर;
इनमें भी वही आम चाहते बसती हैं
जो उलझी सी बिखरी रहती सिमटकर,
जो हिलकोरे मारती हर शख्स के भीतर,
कभी हकीक़त बनती, कभी रहती घुटकर।
चाहे निभाये हम कोई भी नया किरदार
दिल में तो बसता बस वही अपना आधार
जो जन जन के भीतर लेता आलौकिक आकार,
बस पाने को अपने जीवन के मौलिक अधिकार।
कई बार उम्मीद जगी इस दिल में तड़पकर,
काश कि कोई तो साथ चलता उस पार तैरकर।
©अनुपम मिश्र
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