तेरे इश्क का नूर यूँ छाया हम पर
कि हमारी नज़रों को आया नज़र
बस तेरे नम शबनमी आँखों का मंजर
जिसमें न जाने था कौन सा समंदर
जो डूबोये जाता रहा हमें अपने भीतर।
तुम तो एक झोंके के साथ सामने आए
और फिर अलविदा कर निकल दिए
साथ में अपने, तुम चैन भी मेरा ले गए
पर हम तो जो डूबे थे, यूँ ही डूबे ही रहे
बंद आँखों से बस यादें निचोड़ते रहे।
कैसे भूलाए तेरी नज़रों के सुरमयी नूर को
जिसके पैनें तीरों ने किया घायल रूह को।
तेरे मदमस्त नैनों ने ऐसा उत्तेजित किया मन को
कि तेरे सिवाय कुछ सुझता ही नहीं उसको
चंचल बोलती आँखों को कौन कहे भूलने को?
हम पर नहीं इस बात का रत्ति भर असर
कि तुम्हे नहीं हमारे अस्तित्व की कोई फिकर
दिल को कहाँ समझ आती है तेरी अकर
ये तो बस भीतर बाहर सबसे जूझकर
खोया रहता है तेरे नज़रों के इंद्रजाल पर।
No comments:
Post a Comment
Thank you.