Thursday 21 May 2020

इश्क का नूर

तेरे इश्क का नूर यूँ छाया हम पर

कि हमारी नज़रों को आया नज़र

बस तेरे नम शबनमी आँखों का मंजर

जिसमें न जाने था कौन सा समंदर

जो डूबोये जाता रहा हमें अपने भीतर।

 

तुम तो एक झोंके के साथ सामने आए

और फिर अलविदा कर निकल दिए

साथ में अपने, तुम चैन भी मेरा ले गए

पर हम तो जो डूबे थे, यूँ ही डूबे ही रहे

बंद आँखों से बस यादें निचोड़ते रहे।

 

कैसे भूलाए तेरी नज़रों के सुरमयी नूर को

जिसके पैनें तीरों ने किया घायल रूह को।

तेरे मदमस्त नैनों ने ऐसा उत्तेजित किया मन को

कि तेरे सिवाय कुछ सुझता ही नहीं उसको

चंचल बोलती आँखों को कौन कहे भूलने को?

 

हम पर नहीं इस बात का रत्ति भर असर

कि तुम्हे नहीं हमारे अस्तित्व की कोई फिकर

दिल को कहाँ समझ आती है तेरी अकर

ये तो बस भीतर बाहर सबसे जूझकर

खोया रहता है तेरे नज़रों के इंद्रजाल पर।


No comments:

Post a Comment

Thank you.

Decision

Whether to sit or stand straight, Whether to strol or run fast, Whether to end or start, Whether to go Left or Right; No way is wrong or Rig...