Thursday 21 May 2020

ख्वाईश


देखा है हमने एक एक कर सारे हाथ छूटते हुये,
कितने ही रिस्तों को बनते व बिगड़ते हुये,
अरमानों की सजी धजी सेज़ को उजड़ते हुये,
ऐसा नहीं कि प्यार भरा साथ नहीं मिला हमें,
पर जिस हृदयांगन में प्रेम के सागर की प्यास हो
उसे सरोवर की कुछ घूँटों से कहाँ चैन मिले,
अब तो इतनी ही ख्वाईश जेहन में ज़िंदा है,
इन सुलगती लहरों में तृप्ति का एहसास मिले।
©अनुपम मिश्र

No comments:

Post a Comment

Thank you.

Decision

Whether to sit or stand straight, Whether to strol or run fast, Whether to end or start, Whether to go Left or Right; No way is wrong or Rig...