देखा है हमने एक एक कर सारे हाथ छूटते हुये,
कितने ही रिस्तों को बनते व बिगड़ते हुये,
अरमानों की सजी धजी सेज़ को उजड़ते हुये,
ऐसा नहीं कि प्यार भरा साथ नहीं मिला हमें,
पर जिस हृदयांगन में प्रेम के सागर की प्यास हो
उसे सरोवर की कुछ घूँटों से कहाँ चैन मिले,
अब तो इतनी ही ख्वाईश जेहन में ज़िंदा है,
इन सुलगती लहरों में तृप्ति का एहसास मिले।
©अनुपम मिश्र
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