प्रलयंकारी तांडव जन्मा जिनके क्रोध पर,
फुफकारता सर्प जिनके गले में लिपटकर,
बैतालों-भूतों की सेना जिनके निवास पर,
भागीरथी नाचती इतराती जिनके शिखर पर
महादेव ही तो हैं अनंत के अंतिम छोर पर।
यहाँ सब कुछ है घटता उनके ही ईशारे पर,
रात दिन भी आते हैं कैलाश से उतर कर,
लेश मात्र भी नहीं गौरव भोले के ललाट पर,
वह तो रहते लीन तपस्या में भांग पीकर।
श्याम को भी खिलाया उन्होने गोद लेकर,
सीता राम को पूजा उन्होंने सर झुकाकर,
षडयंत्र न समझ पाये भोले, वर दे देकर,
हँसते हुये पी गये सारा विष गला दबाकर;
नतमस्तक है तन मन महादेव के हर अंश पर।
©amritsagar

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