कुल का दीपक कहो उसे
या अपनी मर्यादाओं का द्योतक,
जब तक पुत्र तुम्हारा श्रम में जले नहीं
शिक्षा के समंदर में गोते लगाए नहीं,
सपनों के अपने हवा महल सजाए नहीं,
मिट्टी के लिए अपनी समर्पण भाव रखे नहीं,
नीले आसमान की गरिमा को समझे नहीं,
तब तक वह किसी के भी अनुकूल नहीं।
©अनुपम मिश्र
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