नमन नवोदित साहित्यकार मंच
दिनांक: 2/ 06/ 20
समय: 11:20 am
विषय : चित्र लेखन
विधा: कविता
शीर्षक: वृक्ष का क्रंदन
सांसों की अविरल धारा प्रवाहित है जिनसे,
रगों में रक्त का संचार संचालित है जिनसे,
भूख से तप्त शरीर होती तृप्त जिनके फल से,
उन वृक्षों की व्यथा क्या छिपी है किसी से?
आलीशान कंक्रीट के स्वर्णिम महल बसाने को,
इंसान काटता चला कितने ही वन उपवन को,
जिन्होंने अपने अस्तित्व से निखारा हर जीवन को,
क्या सुन पा रहा है मानव उन वृक्षों के क्रंदन को?
एक नन्हा सा बीज, न जाने कितना कुछ सहकर,
बढ़ता गया होगा, हर ताप, हर तूफान से लड़कर,
और जब वो लहलहा रहा होगा कहीं वृक्ष बनकर,
क्या रोया न होगा रोम रोम उसके कट के गिरने पर?
मानवी फितरत किसी को नष्ट करने की तो नहीं,
मानवता तो बस सृजनात्मकता पर टिकी है अब भी।
© अनुपम मिश्र
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